इस संसार
मेँ मनुष्य चौबीसोँ घंटे शरीर की सेवा-सुश्रूषा मे लगा रहता है। शरीर की
एक भी इच्छा अपूर्ण नहीँ रहने देता, हर मांग की पूर्ति करता है। मगर जो
इसका मालिक है, कर्ता-धर्ता है, जिसके कारण
इसकी कीमत है, उस आत्मा का गुणगान कभी नहीँ करता। उस आत्मा को कभी धन्यवाद नहीँ देता है।
उपर्युक्त बात को इस छोटे-से उदाहरण द्वारा भी समझा जा सकता है कि एक महिला ने सुनार से एक नथनी बनवाई जिसे उसने बड़ी मेहनत से बनाया। नथनी बहुत ही अद्भुत थी। वह महिला नथनी को पाकर नाच उठी, कारण कि उसकी मनोकामना पूर्ण हो गई थी। अब वह महिला हमेशा उस सुनार के गुणगान करने लगी। किन्तु उसने एक बार भी उस ईश्वर का गुणगान नही किया, जिसने उसे नाक दी है।
ऐसी दशा लगभग सभी की देखी जाती है। हमेँ यह याद रखना चाहिए कि शरीर मकान है और आत्मा मकान का मालिक है। मालिक के बिना मकान खण्डहर कहलाता है और आत्मा के अभाव मेँ शरीर मुर्दा कहा जाता है। मनुष्य को मृण्मय को नहीँ, चिन्मय को पूजना चाहिए क्योकि जो चिन्मय अर्थात् शाश्वत है केवल वही हमारा है, उसी पर हमारा अधिकार है। शेष सब छलावा है।
23 comments:
Bahut hi umda post hai.
Aabhar!
Very Nice post..
& welcome to
My Blog
Sunder
बहुत सार्थक प्रस्तुति...
शिक्षाप्रद आलेख....
सुंदर और सार्थक...आभार
शरीर के साथ मन की शुद्धि जरुरी है यही हमें उस परम परमात्मा से जोड़ता है ..
बहुत बढ़िया सुविचार प्रस्तुति
सुन्दर प्रस्तुति !
yahi यही तो पहचान का संकट है इस पूरी शती का। It is a crisis of wrong identity .
मृण्मय चिन्मय दोनों एक दूसरे के बिन बिलकुल अधूरे है ! जीवन में जो भी मिला सब स्वीकारने योग्य लगा मुझे एक को भी अस्वीकार किया तो बहुत दुःख हुआ ! आभार !
सार्थक प्रस्तुति !
सुन्दर मनोहर
बहुत सुंदर विचार.
संयम और विवेक का अभाव ही मूल कारण है कि वह भ्रम को वास्तविकता मान बैठता है.
सभी पाठकोँ को नववर्ष की अग्रिम बधाई।
नई पोस्ट शीघ्र प्रकाशित....
Happy new year from JEEWANTIPS
सभी पाठकोँ को नववर्ष की बधाई।
नई पोस्ट शीघ्र प्रकाशित....
बहुत सुंदर विचार.
बहुत बढ़िया सुविचार...
अच्छा ब्लाग। लिखते रहिए। http://natkhatkahani.blogspot.com
सुन्दर सटीक और सार्थक रचना के लिए बधाई स्वीकारें।
कभी इधर भी पधारें
Thank you very much for making us understand the fact of the life, very much enlightening. We do understand the importance but we forget it conveniently.
Thank you very much for making us understand the fact of the life. It is really enlightening, unfortunately we forget it conveniently.
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