वर्तमान
मेँ भौतिकता का स्तर नैतिकता से कहीँ अधिक ऊँचा है, इतना अधिक कि नैतिकता बहुत पीछे छूट चुकी है। भौतिकता मनुष्य का जीवन विलासितापूर्ण बना देती है,यदि यह कहेँ तो कोई अतिशयोक्ति न होगी कि भौतिकता एकऐसा फल है जिसका स्वाद हर मनुष्य चखना चाहता है फिर भी वह थोड़ा ही स्वाद ले पाता है। इसी अधूरे स्वाद को पूरा करने की सोच से अनैतिकता का जन्म होता है और मनुष्य अपनी भौतिकता की पूर्ति हेतू धन अर्जित करने के लिए अनैतिक और गलत साधनोँ का इस्तेमाल करता है। युवा वर्ग भौतिकता के प्रति ज्यादा अधिक और जल्दी आकर्षित होता है और यह आकर्षण समाज मेँ अपराधीकरण को बढ़ावा देता है। इसका एकमात्र सरल उपाय संतोष है क्योकि इसका स्वाद चखने वाला भौतिकता से दूर रहता है।
27 comments:
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
सत्य है ।
बहुत सुंदर और सत्य...आज समाज और जीवन के हर एक क्षेत्र में नैतिक मूल्यों का ह्वास तेजी से हो रहा है। धन-दौलत के आगे संस्कारों की कीमत कम हो गयी है। नैतिक मूल्य हमें उचित-अनुचित आचार व्यवहार का ज्ञान कराते हैं। जो समाज नैतिकता से विमुख हो जाता है, उसकी अवनति तय है।
सुन्दर व प्रभावी विचार
Bahut Sahi kaha aapne...achchhe sachche vichar
श्याम जी,
बहुत सही कहा आपने
आभार!
बहुत सच बात लिखी है आपने । मेरी ब्लॊग पर आप का स्वागत है ।
सत्य...
सत्य वचन
सुंदर विचार.
बहुत सुन्दर और सार्थक पोस्ट...भौतिक सुखों की दौड़ में हम संतुष्टि के आनंद को भूलते जा रहे हैं...
बहुत सुंदर और सार्थक विचार.
shanti ji mere blog par aane ke liye aapko bahut bahut badhai
aapki post bahut hi sarthakta avam sachchai liye hue hai.
bahut hi saargarbhit abhivyakti----
आप के विचारों का सम्मान करता हूँ लेकिन जिस तरह आपने युवा और अपराधीकरण को जोड दिया है उससे असहमत हूँ हाँ ये अलग बात है कि भारत युवाओं का देश है तो आनुपातिक रूप से संख्या में ज्यादा दिखता है वरना सच तो है कि समाज का हर वो युवा जो थोडा सा भी जागरूक है वो अपने भविष्य की चिन्ता में इतनी डूबा हुआ है और ये उसकी मजबूरी की अति हो जाती है कि वो अपने ऊपर हुए जुल्मों को भी सह लेता भविष्य निर्माण के नाम पर आपको कितने ही एसे उदाहरण देखने को मिल जाएंगें जिसमें छात्रों पर पुलिस का या प्रशाषन का अत्याचार तब होता है जब वो अपने अधिकारों की जायज माँग के लिए याचक की मुद्रा में होते हैं और आप उस पीढी की कारगुजारियों पर भी विश्लेषण कीजिए जो तथाकथित सभ्य है और यौन आचरणों में सबसे ज्यादा लिप्त है हाइवे जैसी फिल्म को भी ध्यान कीजिए या फिर ( राम तेरी गंगा मैली हो गएी) अाशाराम से ले कर महिला पाखंडी राधे तक की कहानी तो आपको पता ही होगी
विकास जी,
सर्वप्रथम तो आपका मेरे ब्लॉग पर आकर अपने विचार व्यक्त करने के लिए धन्यवाद।
दूसरी बात यह है कि आप मेरी पोस्ट को दुबारा पढ़ेँ क्योकि आपकी टिप्पणी के अनुसार युवा वर्ग व अपराधीकरण को जोड़कर बताया गया है जबकी पोस्ट के अनुसार स्वयं की भौतिकता की पूर्ति करने मेँ असमर्थ युवा अनैतिक हो जाता है और ऐसा प्रत्येक युवा नहीँ होता है।
बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
आभार!
इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
भौतिकता से अनैतिकता नहीं आती। लेकिन भौतिकता की लिप्सा से अनैतिकता जरूर आती है। युवा पीढ़ी जितनी भौतिकता के करीब है उतना ही वे नैतिकता के भी करीब है।
अजित जी,
अतिभौतिकतावादी अनैतिकता का शिकार होते है और प्रत्येक व्यक्ति ऐसा हो, यह आवश्यक नहीँ है।
बहुत खूब। अच्छी रचना की प्रस्तुति।
क्या बात
बहुत सही कहा है आपने..भौतिकता की दौड़ में मानव आज मूल्यों से दूर होता जा रहा है..
सत्य वचन
http://savanxxx.blogspot.in
बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति....
आभार!
इसी प्रकार अपने अमूल्य विचारोँ से अवगत कराते रहेँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
सत्य वचन ,सुन्दर लेखन
सुन्दर विचार
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
सुन्दर विचार
http://savanxxx.blogspot.in
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