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February 21, 2016

आत्मानुभूति का भाव बनाता है श्रेष्ठ

सदियोँ पुरानी सभ्यता का युवा रिषि हमेँ आत्म स्वरूप की अनुभूति का ही संदेश देता है। सच्चे व आध्यात्मिक व्यक्ति को सर्वत्र उदार माना जाता है। आज के समय मेँ हमेँ उदारमना मनुष्योँ की ही आवश्यकता है। उदारता से वैमनस्य का शमन होता है। आत्मानुभूति हमेँ किसी भी क्षण शक्तिहीन नहीँ रहने देती। आत्मानुभूति का अनुशासन मनुष्य को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाता है। दीनता कायरता है। मनोवेगोँ की गुलामी से ही शक्ति का अपव्यय होता है। अथक और अनवरत परिश्रम ने ही सभ्यता के सुंदरतम सपनोँ को सच कर दिखाया है। इस सबंध मेँ विवेकानन्द का पत्र साहित्य हमारी राष्ट्रीय संस्कृति की अनुपम निधि है जो नई पीढ़ी को धर्म, दर्शन, संस्कृति, शिक्षा, समाज और राष्ट्र निर्माण स्फूर्तिदाई संदेश देते हैँ। निडरता व साहसिक कार्योँ की ओर उन्मुख करते हैँ। स्वामी विवेकानन्द कहते थे कि आत्मसंघर्ष से साधारण परिस्थितियोँ मेँ असाधारण परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैँ। मानव सभ्यता और भारतवर्ष का भविष्य युवाशक्ति और उसके विवेक सम्मत व्यवहार व सम्यक लक्ष्य पर निर्भर है।

16 comments:

प्रभात said...

सार्थक विचार ..एक नयी राह दिखाती!

दिगम्बर नासवा said...

सार्थक चिंतन है ...

shashi purwar said...

सुविचार , सार्थक

Amrita Tanmay said...

श्रेष्ठ विचार ।

Madhulika Patel said...

सार्थक लेख. बहुत अच्छी बातें.

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर और सार्थक चिंतन...

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!

kuchhalagsa.blogspot.com said...
This comment has been removed by the author.
गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

सार्थक चिंतन

5th pillar corruption killer said...

bahut hi jaandaar baat likhi hai ji aapne !! main padhta rahta hoon aapki rachnayen !

जमशेद आज़मी said...

बहुत ही सार्थ्‍क और सुंदर विचारों की प्रस्तुति।

Sanju said...

बहुत ही ज्ञानवर्धक रचना...

Nitish Tiwary said...

सार्थक एवम् सराहनीय विचार।

suresh swapnil said...

श्रेष्ठ विचार। बधाई ।

डा श्याम गुप्त said...

मानव सभ्यता और भारतवर्ष का भविष्य युवाशक्ति और उसके विवेक सम्मत व्यवहार व सम्यक लक्ष्य पर निर्भर है।----सच सच कथन