सदियोँ पुरानी सभ्यता का युवा रिषि हमेँ आत्म स्वरूप की अनुभूति का ही संदेश देता है। सच्चे व आध्यात्मिक व्यक्ति को सर्वत्र उदार माना जाता है। आज के समय मेँ हमेँ उदारमना मनुष्योँ की ही आवश्यकता है। उदारता से वैमनस्य
का शमन होता है। आत्मानुभूति हमेँ किसी भी क्षण शक्तिहीन नहीँ रहने देती। आत्मानुभूति का अनुशासन मनुष्य को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर बनाता है। दीनता कायरता है। मनोवेगोँ की गुलामी से ही शक्ति का अपव्यय होता है। अथक और अनवरत परिश्रम ने ही सभ्यता के सुंदरतम सपनोँ को सच कर दिखाया है। इस सबंध मेँ विवेकानन्द का पत्र साहित्य हमारी राष्ट्रीय संस्कृति की अनुपम निधि है जो नई पीढ़ी को धर्म, दर्शन, संस्कृति, शिक्षा, समाज और राष्ट्र निर्माण स्फूर्तिदाई संदेश देते हैँ। निडरता व साहसिक कार्योँ की ओर उन्मुख करते हैँ। स्वामी विवेकानन्द कहते थे कि आत्मसंघर्ष से साधारण परिस्थितियोँ मेँ असाधारण परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैँ। मानव सभ्यता और भारतवर्ष का भविष्य युवाशक्ति और उसके विवेक सम्मत व्यवहार व सम्यक लक्ष्य पर निर्भर है।
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16 comments:
सार्थक विचार ..एक नयी राह दिखाती!
सार्थक चिंतन है ...
सुविचार , सार्थक
श्रेष्ठ विचार ।
सार्थक लेख. बहुत अच्छी बातें.
बहुत बढ़िया
बहुत सुन्दर और सार्थक चिंतन...
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
सार्थक चिंतन
bahut hi jaandaar baat likhi hai ji aapne !! main padhta rahta hoon aapki rachnayen !
बहुत ही सार्थ्क और सुंदर विचारों की प्रस्तुति।
बहुत ही ज्ञानवर्धक रचना...
सार्थक एवम् सराहनीय विचार।
श्रेष्ठ विचार। बधाई ।
मानव सभ्यता और भारतवर्ष का भविष्य युवाशक्ति और उसके विवेक सम्मत व्यवहार व सम्यक लक्ष्य पर निर्भर है।----सच सच कथन
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